What Are Emotions Called? (Part - 07) (हिंदी अनुवाद- भावनाऍ किसे कहते है? भाग - 07)
- ayubkhantonk
- Aug 24
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Updated: Sep 7
दिनांक : 24.08.2025

हमें मैत्री भाव का अभ्यास नही है इसलिए मैत्री भाव की शक्ति के प्रति अज्ञानता है। शांतिकाल में देश शिथिल हो जाता है और युद्दकाल में लोगो में शक्ति का प्रादुर्भाव होने लगता है। हमने शांतिकाल का सदुपयोग करना नहीं सीखा। वरना शांतिकाल में तो शक्ति का संचार होना चाहिए। शांतिकाल में संघर्ष नही होता। जहॅा संघर्ष नही होता, वहॅा सृजनात्मक शक्ति का उदय होता है। कला, संस्कृति, काव्य के पुष्प मैत्रीभाव में पुष्पित अैार पल्लवित होते हैं। मानव के चित्त की शांति मैत्रीपूर्ण अवस्था में ही प्रकट होती हैं।
ओशो ने महाबलेश्वर के शिविर में कहा था कि जर्मनी और जापान की संपूर्ण शक्ति की आधारशीला ही वेमनस्यता पर आधारित थी। इन देशो के शासको ने अपने सार्वजनिक भाषणो का केंद्र बिंदू वैमनस्यता के इर्द-गिर्द रखा। इन शासको ने भय का ऐसा माहैाल तैयार कर दिया कि आमजन को महसूस होनें लगे कि उन्हे पडैासी देश से खतरा है। पडैासी देशो के खिलाफ भडकाना ही शासको का मूल उद्देश्य हो गया था। लोगो के जहन में खतरे के सायरन बजने लगे। वे काल्पनिक खतरे के भय से स्वंय को शक्तिशाली समझने के लिए विवश हो गए। वे खोफ के साए में जीवन जीने के लिए मजबूर कर दिए गएा इस काल्पनिक खोफ नें उनमें शक्ति का संचार कर दिया l
खैर। मै वायदे के मुताबिक ठीक पॉच बजे मेरे, मित्र के घर पहुॅचा। मित्र के ताउजी ने हिकारत भरी दृष्टि से मुझे उपर से नीचे तक देखा जैसे कि मैं कोई चिडियाघर से भागा हुआ कोई जन्तु हाेउ। मेरे मित्र ने अपने पिता और ताउजी से मेरा परिचय करवाया। मेरी आयु उस वक्त बीस वर्ष हुई ही थी। मताधिकार का हक नहीं मिला था। औपचारिक बातो के बाद वे विषयवस्तु पर केद्रिंत हुए। अंग्रेजी के प्राध्यापक थे। वार्तालाप में ज्यादातर अंग्रेजी के शब्दो का इस्तेमाल करने के अभ्यस्त थे। उन्होने पूछा- ‘‘तुम, मैत्री भाव कहॉ से ले आए। मालूम है यदि कोई पर्सन, यूनिवर्सल के प्रति मैत्रीपूर्ण हो जाएगा तो करने को बचेगा ही क्या?
‘‘ सर। मानव अंशांत और उद्दीग्न है। बैचेन हैं। मैत्री से बेचैनी और उद्दीग्नता का ग्राफ नीचे आ सकता हैं। जीवन रस, चेहरे से झलकने लगता है। जो चेहरे मुरझाऐ हुए है वे आभायुक्त हो सकते है।.हम---‘‘ उन्होने, मुझे बीच में ही मेरी वाणी पर ब्रेक लगाने हेतु विवश कर दिया।
वे झल्लाकर बोले---
‘‘मैने सिर्फ यह पूछा था कि यदि हम पूरे यूनिवर्सल के प्रति मैत्रीपूर्ण हो जाएगे तो हमारे पास करने को क्या बचेगा। स्टेट लेवल के एग्जाम में कंपिटिशन होता है सैंकडो कम्पिटिटरस को पीछे धकेल कर आगे निकलने पर ही कामयाबी मिलती हैं। लेकिन तुम्हारी मैत्री की थ्योरी से तो सब कुछ चौपट हो जाएगा। चले है, प्रिमेच्योर बच्चो का ब्रेन वाश करने। यह थ्योरी कम्पिटिशन की दुश्मन साबित होगी। दुश्मन।‘‘
आगे जारी है.........
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