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What Are Emotions Called? (Part - 08) (हिंदी अनुवाद- भावनाऍ किसे कहते है? भाग - 08)

  • ayubkhantonk
  • Sep 7
  • 3 min read

Updated: Sep 21

दिनांक : 07.09.2025

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वे आखिरी शब्द बोलते-बोलते हॉफने लगे। मेरी तरफ यूॅ देखने लगे कि अब मेरी जुबान पर ताला लग जाएगा। मुझे, अपने नजर के चश्में के नीचे से घूरने लगे। आयु का अंतराल था। मोहल्ले के रहने वाले थे। बडे होने के नाते मेरे मन में उनके प्रति आदर भाव था। अंग्रेजी के प्राध्यापक थे इसलिए मुझे लगता था कि उन्होने काफी-कुछ पढा होगा। मेरी धारणा उनके उपरोक्त विचारो को सुनकर खंडित हो चुकी थी। फिर भी मैने अपने शब्दकोष के सम्मानजनक शब्दो को चयनित कर उनसे निवेदन किया-

‘‘आप दूसरे को हराकर विजय पताका फहराने का विचार अपने विधार्थियों के अवचेतन में बैठा रहे है। इससे आपके विधार्थी हिसंक तो हो सकते है लेकिन शांत और करुणावान नही हो सकेगें। उनको अपनी परफोरमेंस को बेहतर करने की उतनी फिक्र नही है जितनी दूसरो को चारो खाने चित्त करने की। मैत्रीपूर्ण भाव से, उनके अवचेतन में एक ही बिंदू रहेगा कि कैसे वह अपनी क्षमता की ग्रंथियो को एकजुट करके बेस्ट परफोरमेंस दे सके। बिना मैत्री का केंद्र जागृत किए, ऐसा करना मुमकिन नहीं हो पाएगा। ‘‘

‘‘ मेरा भतीजा स्टेट लेवल के एग्जाम में सक्सेस हुआ है। उसने कभी मैत्री का पाठ नही पढा। बल्कि यह कहना ज्यादा प्रोपर होगा कि उसने मित्रता शब्द तो सुना होगा लेकिन मैत्री शब्द तो उसकी डिक्शनरी में ही नहीं होगा। फिर बताओ वह सक्सेस कैसे हुआ?‘‘ उनका लहजा आक्रामक होता चला गया। उनको लगा कि अब मै निरुत्तर हो जाउगॉ।

‘‘सर। मेरा कहने का मतलब यह नही हैं कि बिना मैत्रीभाव को साधे कम्पिटिशन में सक्सेस नही हुआ जा सकता। मै तो यह निवेदन करना चाहता हूॅ कि मैत्रीभाव से चित्त शांत होता है। सकारात्मक सोच के बीज अंकुरित होते हैं। प्रतियोगिता और शत्रुता बहिकेंदित होती है और प्रेम और मैत्री का बाहरी व्यक्ति से कोई लेना देना नहीं हैं। प्रेम और मैत्री अंतःकेंदित होते हैं। शत्रुता, दूसरो से संबंधित होती है। प्रेम स्वयं से ताल्लुक रखता हैं। प्रेम के झरने भीतर से प्रवाहित होते हैं। घृणा तो बाहर की प्रतिक्रिया से आरंभ होती हैं।‘‘ मैने सोचा कि शायद मैं अपनी बात केा पूर्णतया स्पष्ट करने में समर्थ रहा हूॅ।

हुआ भी यही। उनके चेहरे पर विशेष प्रकार की लकीरे सिकुडने और फैलने लगी। वे गहरी सोच में पड गए। बहुत ही नपे-तुले शब्द, उनके मुॅह से निकले-

‘‘यह थोटस तो नए हैं। मैने कभी इस ढंग से सोचा नही।‘‘ उन्हाेने हथियार डाल दिए। स्वयं को असहज महसूस करने लगे। उनके चेहरे पर कई भाव आए और गए। उन्होने गिलास उठाया। दो घूॅट पानी पीकर, खुश्क गले को तर किया और पूछ ही लिया-

‘‘ ये नए थोटस तुम्हारे दिमाग में आए कहॉ से ?‘‘

मैंने कोई जवाब नहीं दिया। वे हताश हुए। कुछ सोचकर ,कहने लगे--

‘‘ये थोटस तुम्हारे माइंड की इजाद तो नहीं हैं। सही-सही बताओ, किस थिंकर के थोटस है ?‘‘

मैं फिर मौन रहा। अब मुझे भी आनंद आने लगा। वे यह तो मान चुके थे कि जो मैं कह रहा हूॅ। वह सत्य हैं। चूॅकि मेरी आयु उनसे आधी भी नहीं थी। इसलिए उनका अंहकार उन्हे यह स्वीकार नहीं करने दे रहा था कि मेरे से आधी आयु का युवक सत्य कह रहा है। उनके अंहकार पर इस बात की भी चोट पड रही थी कि उनके दिमाग मे ऐसे ख्यालात क्यों नहीं आए।

‘‘मुझे थिंकर का नाम जानना है। प्लीज मुझे बताए।‘‘ अब उनका लहजा, निवेदनात्मक हो गया था। वे थिंकर का नाम जानने के लिए बेताब हो रहे थे। शायद उनके सब्र का बॅाध टूट रहा था।

आगे जारी है......... 

 
 
 

8 Comments


Bhag Chand Jat
Bhag Chand Jat
an hour ago

"ये सिर्फ बातचीत नहीं, मन और बुद्धि के बीच का संवाद है। सच्चे विचार हमेशा भीतर से जन्म लेते हैं, बाहर से नहीं

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ayub khan
ayub khan
Sep 10

THANKS

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ayub khan
ayub khan
Sep 10

Thanks to all

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Salman Khan
Salman Khan
Sep 09

Very good

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mahaweer mahawar
mahaweer mahawar
Sep 09

Good

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आपका स्वागत करना मेरे लिए प्रसन्नता की बात है।

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