Osho Awakens Our Conscience (Part - 7) (हिंदी अनुवाद- ओशो हमारे विवेक को जागृत करते है। भाग - 07)
- ayubkhantonk
- Jul 6
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Updated: Jul 9
दिनांक : 06.07.2025

दुनिया में ऐसे कई लोग है जो रात को सोते तो है लेकिन जाग नहीं पाते। उनकी रात्रि में नींद के दरमियान ही जीवन लीला समाप्त हो जाती हैं। जब भी स्वतः ऑख खुले तो अपने ईष्ट को धन्यवाद देना कि उसने एक शानदार सुबह देखने का एक और अवसर दिया। इस प्रकार ओशो अनुशासन के प्रति कठोर नही हैं। वे आत्मानुशासन के अविष्कारक है। ऐसा अनुशासन, जो आत्मा से जन्म लेता है। ऐसा अनुशासन, जो स्वाभाविक और आत्मस्फुरित हैं। प्रयास रहित। बिना भय के। बिना पाप के डर के l
कुछ लोग रेड लाईट में जुर्माने के भय से प्रविष्ट नहीं होते हैं। चौराहे पर पुलिसकर्मी न हो तो वे बेधडक रेड लाईट को पार कर लेते है। ओशो का जीवन भर प्रयास रहा कि ध्यान से लोगो की चेतना को विकसित किया जाए ताकि चोराहे पर पुलिसकर्मी तैनात हो या नहीं, उनके दिमाग में स्वतः ही यह रहे कि चाहे कोई देख रहा हो या नहीं? उसे रेड लाईट पार नही करनी है। कई लोग, चोरी पकडे जाने पर दंड के भय से चोरी नहीं करते हैं। यदि पकडे जाने का भय नही हो तो चोरी कर सकते हैं। एक दूसरी स्थिति ओर भी होती है कि चोरी करने का ख्याल ही दिमाग में नहीं आऍ। पकडे जाने की दूर-दूर तक कोई आशंका नहीं है। आराम से पराए माल पर हाथ साफ किया जा सकता हैं। फिर भी मस्तिष्क में हाथ साफ करने का विचार ही जन्म नहीं लेता। ओशो इस विचारधारा को अचोरी की संज्ञा देते हैं। यह अचोरी का भाव, भीतर से आता है। अंतर्मन से आता हैं। इस भाव की उत्पति के लिए यह समझना जरुरी हैं कि गलत और अवैध कार्य के परिणाम अप्रोक्ष रुप से भी घटित हो सकते है। आग में अभी हाथ देगे तो हाथ अभी जलेगा। हाथ का जलना तुरंत आरंभ हो जाता हैं। यह प्रत्यक्ष परिणाम हैं। ओशो का मानना था कि कार्य का परिणाम तुरंत आता है। मन में उठे वैमनस्यपूर्ण भाव से बैचेनी तुरंत प्रारंभ हो जाती हैं। मस्तिष्क में विचारो का झंझावात हिलोरे लेने लगता हैं। अभी कुछ किया नहीं है। सिर्फ दिमाग में ख्याल आया हैं। इस ख्याल से ही परेशानी का उदभव हो जाता है। यह ख्याल ही अंशांति को जन्म देने के लिए काफी हैं। ऐसे ख्यालो को बलपूर्वक रोकने का प्रयास सफल नहीं होता है। यदि बलपूर्वक किसी तरह रोक भी लिया गया तो अवचेतन में फीड हो जाएगा। इसकी जडे नष्ट नहीं होगी। थोडा सा खाद पानी मिला और बीज अंकुरित हुए। ऐसे ख्यालो की जडे चेतना के विकास से ही नष्ट की जा सकती हैे। बिना ध्यान के चेतना का जागरण संभव पहीं है l जिस अनुपात में चेतना जागत होने लगेगी, उसी अनुपात में जीवन की सार्थकता का बोध घना होता चला जाएगा l
अध्याय 02 समाप्त......
Very good