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Osho Awakens Our Conscience (Part - 6) (हिंदी अनुवाद- ओशो हमारे विवेक को जागृत करते है। भाग - 06)

  • ayubkhantonk
  • Jun 30
  • 3 min read

दिनांक : 30.06.2025

देखिए। ओशो की कल्पनाशीलता।

सदियो से चल रही, परंपरागत कहानी का अंत कैसे रुपांतरित कर दिया। 

उस दिन मेरे जहन में आया कि हमारी बुद्दि एकतरफा चलती है। दूसरे पक्ष तक जाने की बुद्दि सोच ही नहीं सकती। जैसे वृद्द टोपीवाले ने अपने पुत्र को बंदरो से टोपियाॅ वापस प्राप्त करने की तरकीब बताई थी, वैसे ही बंदरो के सरदार ने भी सभा करके उन्हें गुरु ज्ञान दे दिया था। कहानी के इस अंत ने, मुझे भी नए ढंग से कहानियो, कविताओ और किस्सो पर सोचने के लिए एक प्लेटफार्म उपलब्ध करवाया। मेरे सोचने समझने के तरीके में परिवर्तन आता गया।

यह ओशो की महान देन है। वरना तो धर्म प्रचारक खुद की कही हुई बात को ब्रहम वाक्य बताते हुए उस पर बिना, किन्तु परन्तु के अनुसरध करने पर बल देते है। संभवतया ओशो, ऐसे एक मात्र प्रवक्ता है जिन्होने प्रत्येक प्रवचन में संदेह करने का उपदेश दिया l उन्‍होने हमें, अपने विवेक का प्रयोग करते हुए, मानने के बजाय जानने पर बल दिया। अेाशेा के सन सतर से पहले के प्रवचनो का अंत इस तरह होता था-

‘‘मेरी बातो को इसलिए मत मान लेना की मैने कहा है। यह मेरे अपने अनुभव है। आप इन बातो पर गौर करना। यदि इनमें सत्य होगा तो थोडे से प्रयास से जान जाओगें। मेरी बातो को इतने ध्यान से सुना, इसके लिए अनुगृहित हूॅ। अंत में आपके भीतर बैठे परमात्मा को प्रणाम करता हूॅ। मेरे प्रणाम स्वीकार हो।‘‘

कैसे अनूठे रहस्यदर्शी है। लोगो के विवेक को जागृत करना चाह रहे हैं। इतिहास गवाह हैं कि किसी भी दार्शनिक और रहस्यदर्शी ने कभी नहीं कहा कि मेरी बातो को इसलिए मत मान लेना की, मैनें कहा हैं। वे तो हमें यह कह रहे हैं कि मेरे कहे हुए पर चिंतन मनन करना और सत्य की कसौटी पर परखना। यदि उनका कहा हुआ, सत्य होगा तो न मानने के अलावा अन्‍य कोई विकल्प शेष नहीं रहेगा। दूसरे संतो और रहस्यदर्शियों के साथ ऐसा नही है। वे या तो अपने प्रवचनो को परमात्मा की वाणी से जोडते हैं या फिर शास्त्रो के सूत्रो से। ऐसे लोग कहते है कि जो मै कह रहा हूॅ, वह लोहे की लकीर हैं। यदि इस लकीर के दॉए-बाए गए तो नर्क भेज दिए जाओगें। कई लोग अपने प्रवचनो में यह भी कह देते हैं कि मेरे वकत्व शास्त्र समर्थित हैं। इन पर संदेह करोगे तो जीवन भर दुखी रहोगें। यदि सुबह ब्रहम मूर्त अर्थात फजर में नहीं उठोगे तो पाप लगेगा।

ओशो कहते है कि ब्रहम मुहरथ अर्थात फजर में उठना अच्छा है लेकिन तब, जबकि हमारे अतंर्मन से ऐसा जागरण हों । पाप के डर से ब्रहम मुहरत में जागने से पुण्य नही होगा। जबरदस्ती अलार्म लगाकर उठने से पुण्य का कोई संबंध नही हैं। जब नींद पूरी भर जाए और अंतर्मन कहे कि जागो l अब पक्षी गीत गाने वाले है। योग प्राणायाम और नमाज की तैयारी करो तो सुखानुभूति को अनुभव करोगें। किसी पाप के डर से नहीं ऐसा जागरण नहीं होना चाहिएा। किसी पुण्य की अभिलाषा से भी नहीं। सिर्फ रात्रि की पूर्णता और सवेरे के आगमन का स्वागत करने के प्रयोजन से।

दुनिया में ऐसे कई लोग है जो रात को सोते तो है लेकिन जाग नहीं पाते। उनकी रात्रि में नींद के दरमियान ही जीवन लीला समाप्त हो जाती हैं। जब भी स्वतः ऑख खुले तो अपने ईष्ट को धन्यवाद देना कि उसने एक शानदार सुबह देखने का एक और अवसर दिया। इस प्रकार ओशो अनुशासन के प्रति कठोर नही हैं। वे आत्मानुशासन के अविष्कारक है। ऐसा अनुशासन, जो आत्मा से जन्म लेता है। ऐसा अनुशासन, जो स्वाभाविक और आत्मस्फुरित हैं। प्रयास रहित। बिना भय के। बिना पाप के डर के l

आगे जारी है .............

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1 comentário


irfannilofar5555
30 de jun.

Osho is great soul

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आपका स्वागत करना मेरे लिए प्रसन्नता की बात है।

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