What Are Emotions Called? (Part - 09) (हिंदी अनुवाद- भावनाऍ किसे कहते है? भाग - 09)
- ayubkhantonk
- Sep 21
- 2 min read
Updated: Oct 6
दिनांक : 21.09.2025

मैनें कोई जवाब नहीं दिया। मै फिर मौन रहा। अब उनकी जिज्ञासा परवान चढने लगी। थिंकर का नाम जानने के लिए बैचेन होने लगे। मेरा मित्र, पास की कुर्सी पर बैठा हुआ था। उसने मेरा हाथ दबाकर संकेत दिया कि थिंकर का नाम बताओ, वरना ताउजी नाराज हो जाएगे। लेकिन मैने कोई प्रतिक्रिया नहीं की। मित्र ने मेरी कमर में फिर हुददा मारा। फिर मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं की। वे अब ज्यादा ही परेशान हो गए। उन्होने एक-एक शब्द चबाते हुए मेरी तरफ देखकर आदेश पारित किया -‘‘ थिंकर का नाम बताओ।‘‘
मैं फिर मौन रहा। उनके चेहरे पर गर्दिश कर रहे भावो को देखता रहा। उनकी जिज्ञासा सातवे आसमान पर थी। पहलू बदलने लगें। हमारे बीच तनावपूर्ण सन्नाटा छा गया। वे थिंकर का नाम जानने के लिए बेताब होते जा रहे थे। मैं मूर्तिवत बैठा रहा । इन्ही मुद्राओ में दस मिनट गुजर गए।
आखिरकार प्राध्यापक महोदय नें सन्नाटे को तोडा। बोले-‘‘ मुझे थिंकर का नाम बताओ। मै, मैत्री की पूरी थ्योरी पढना चाहॅूगा। कौनसी किताब में यह थ्योरी पब्लिश हुई है। मै उस किताब को पढुगॅा।‘‘
अब मुझे यकीन हो गया था कि महाशय बिना थिंकर का नाम जाने मुझे छोडने वाले नही हैं। मजबूर होकर मुझे कहना ही पडा-‘‘ सर। यह थोटस आचार्य रजनीश के है।‘‘
आचार्य रजनीश का नाम सुनने ही प्राध्यापक महोदय को ऐसा लगा जैसे, किसी ने उनके कानो में, पिघला हुआ शीशा डाल दिया हो। वे गुस्से की ज्यादती की वजह से अपनी मुठिठयों को जोर लगाकर भींचने लगे। उनकी मुख-मुद्रा ऐसी हो गई, जैसे मैनें उनके मुॅह में जबरदस्ती कुनेन डाल दी हो। अपनी सम्पूर्ण शक्ति को एकजाइ करके चिल्लाए-
'‘दिया-बत्ती के वक्त किस नास्तिक का नाम ले लिया।'' रजनीश ने लोगो को नास्तिक बनाने का आंदोलन शुरु कर रखा है। लेकिन इस आंदोलन को हम कामयाब नहीं होने देंगे। वह लोगो का धर्म से यकीन उठा रहा हैं। हम तो उसका नाम तक जुबान पर नहीं लाते है। तुम उसके थोटस स्टूडेंटस के जेहन में डालकर धर्म को नुकसान पहुॅचा रहे हो। हम, इसे बर्दाश्त नहीं करेगें।‘‘
वे मेरे मित्र और अपने भतीजे को सख्त लहजे में चेतावनी देते हुए गरजे-
‘‘ आज के बाद, इस नास्तिक के साथ रहा तो मुझसे बुरा कोई न होगा। तुम इस जाल को समझ नहीं रहे हो। यह तुम्हारा ब्रेन वाश कर रहा है।‘‘
वे हॉफने लगे। मैने हिम्मत करके पूछा-
‘‘सर, क्या आपने कभी आचार्य जी पुस्तक पढी है? ‘‘
‘‘मै क्यो पढुॅ, उस नास्तिक की बुक को। मैने लोगो से सुना है कि वह एक आला दरजे का नास्तिक आदमी है। विदेशियो और धनवानो को अपने सम्मोहन के जाल में फॅसाकर उनका ब्रेन वाश कर रहा है तभी तो सरकार नें उसे भारत से भगा दिया। वह अमेरिका में शरण लिए हुए हैं।। वह भारतीय समाज के लिए खतरा हैं। गुस्से की ज्यादती के कारण उनका संपूर्ण शरीर कॉपने लगा।
आगे जारी है.........
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