ओशो हमारे विवेक को जागृत करते है। (भाग : 2, ब्लॉग : 1)
- ayubkhantonk
- May 3
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Updated: May 9
दिनांक : 03.05.2025
पिछले ब्लॅाग में हमने चेतना के विकास की संभावनाअेा पर आपके सामने अेाशो के नजरिये को रखा था।

भावनाए किसे कहते है?
चेतना को विकसित करने के तीन साधन है-ध्यान, प्रेम और भक्ति ऐसा नहीं है कि ओशो ने सत्य, प्रेम, चेतना के विकास के लिए सिर्फ सिद्वांतो की ही व्याख्या की हो बल्कि वे चेतना के विकास हेतु आवश्यक प्रयोग भी विस्तार से समझाते है। ओशो के पेतीस साल बाद भी एक वाक्य लोगो के मुॅह से सुना जा सकता है कि आज लोगो की भावनाए, भौतिकवाद के युग में अशुद्व हो गई है। ओशो ने सत्तर साल पहले भाव-शुद्वि पर काम करना शुरु कर दिया था। अन्य लोगो के साथ मैनें भी ओशो के भाव-शुद्वि के प्रयोग आरंभ किए तो उनके चमत्कारिक परिणाम सामने आए।
सबसे पहले, हमें यह समझना होगा कि भाव और भावनाए क्या होती है। भाव का अर्थ है-- मानव के भीतर से जागे हुए विचार। व्यक्ति के मन में उठने वाले अलग-अलग अनुभव और प्रतिक्रियाए् भावनाए कहलाती है। जैसे- खुशी, दुख, गुस्सा, प्यार, डर इत्यादि। भावना किसी की आशिंक रुप से मानसिक, आंशिक रुप से शारीरिक प्रतिक्रियाओं को दर्शाती है। खुशी, दर्द, आकर्षण या विकर्षण से चिंहित होती है। यह केवल एक प्रतिक्रिया के अस्तित्व का सुझाव दे सकती है। प्रतिक्रिया की प्रकृति या तीव्रता के बारे में संकेत भी करती है। इसकी प्रकृति और तीव्रता के बारे में सब कुछ नहीं बताती है। इस प्रकार भावनाए, किसी घटना या स्थिति के जवाब में होती हैं। भावनाओं से जुडी हुई कुछ बातो पर गौर करे तो हम भावनाओ का भावार्थ आसानी से समझ सकेगे-
भावनाओ में खुशी, दर्द, आकर्षण, और विकर्षण शामिल है। भावनाए, गतिशील होती है इसलिए एक पल में खुश होना और दूसरे पल में दुखीः होना सामान्य बात है।
भावनाए, किसी चीज, घटना या स्थिति के विशेष महत्व को दर्शाती हैे।
भावनाए, मन की शांति, शारीरिक संवेदना और हाव-भाव का एक जटिल अनुभव माना जाता है।
भावनाए किसी ऐसी कार्रवाई या घटना से जुडी होती है जो इतिहास में घटित हुई हो या भविष्य में घटित होनें की संभवना हो।
मेरियम का मानना है कि भावनाए, मस्तिष्क की गतिविधियो का परिणाम होती है। मस्तिष्क के विभिन्न भाग जैसे एमिग्डाला, हिप्पोकेम्पस और प्रीफ्रटल कांर्टेक्स, भावना को उत्पन्न करने में महत्वपूर्ण भूमिक निभाते है। डाक्टर मेगन अन्ना के शोध के अनुसार भावनाए, मानसिक और शारीरिक अवस्थाओं का जटिल गठजोड है। वे आनंद के उल्लास से लेकर उदासी के जो भय के आवेग, आश्चर्य के झटके और घृणा सहित, सब कुछ समेटे हुए है। भावनाए मात्र क्षणिक नहीं होती है। वे हमारे विकल्पों, कार्यो और सामाजिक अंतःक्रियाओं को प्रभावित करने वाले शक्तिशाली कारक है। यह हमारें स्वास्थय और कल्याण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। मनोविज्ञान और तंत्रिका विज्ञान को समाहित करते हुए भावनाओ का अध्ययन, उनके जटिल कामकाज और मानव व्यवहार पर पडने वालें प्रभावो को उजागर करना है।
डाक्टर मेगन के शोध के अनुसार भावनाएं, हमारी शारीरिक संवेदनाओ के बारे में बताई गई कहानी के संयोजन से उत्पन्न होती है। हमारी शारीरिक संवेदनाए संकेतो के रुप में कार्य करती है, जो हमें आंतरिक और बाहरी वातावरण की जानकारी प्रदान करती है। हॉलाकि, इन संवेदनाओं के बारें में हमारे मन की धारणा और विश्वास विशिष्ट भावनाओं को जन्म देते है। शोधो से यह तथ्य भी उजागर हुआ है कि भावनाओं की उत्पत्ति और उनके प्रकटीकरण में मन की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। जिन भावो को, हमारे विचारो ने जन्म दिया हैं, उनसे हमारा जीवन प्रभावित होता हैं। जीवन की सकारात्मक और नकारात्मक यादें और अतीत, हमारे वर्तमान को भी प्रभावित करता हैं। भावनाएं संस्कृति से भी प्रभावित होती है। जैसे कई संस्कृतियॉ भावनाओ को अभिव्यक्त करने की पूर्ण स्वतंत्रता देती है। लेकिन कई संस्कृतियों मे भावनाओ को व्यक्त करने का दायरा सीमित होता हैं। भावनाए, हमारे निर्णय लेने की शक्ति को भी प्रभावित करती हैं। भावनाओ से निजी रिश्ते भी प्रभावित होते हैं। जब हम, किसी ऐसे व्यक्ति से मिलते है जो हमारी विचारधारा के अनुरुप होता है तो उससे मिलन प्रीतिकर लगता है। हमारे पसंद के व्यक्ति से मिलन, प्रेम भाव को ओर प्रगाढ करता हैं।
हम यह भी कह सकते है कि भाव, मन के क्षणिक आवेग से मस्तिष्क में कार्यशील होकर आवेग के अनुसार कार्य करने को प्रेरित करते है जबकि विचार, शुद्व मानसिक संवेदना के कारण उत्पन्न होनें से, इनमें तुलनात्मक रुप से अधिक स्थायित्व होता है। अतः इनमें दूरदर्शिता प्रकट होती हैं। विज्ञान के अनुसार हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती हैं। हमारी क्रिया सकारात्मकता व स्वच्छ मनोभावयुक्त होगी तो परिणाम भी सुखद होगें। यह प्रश्न फिजूल हैं कि हम किसी के प्रति शुभ विचार रखे और सामने वाला हमारे प्रति अशुभ विचारो से भरा हुआ हो तो हमें भी उसके जैसा हो जाना चाहिए। एसा नही है। बुर्जुगो ने कहा हैं कि नेकी कर और दरिया में डाल। ओशो एक बोध कथा सुनाते है- एक व्यक्ति का नए गॉव में आगमन हुआ। उसने एक वृद्व व्यक्ति से पूछा कि मै इस गॉव में बसना चाहता हूॅ। आप तो बुजुर्ग है। कृपया मुझे बताए कि यहॉ के लोग कैसे है? उस बजुर्ग ने इस प्रश्न का सीधा उत्तर नहीं दिया बल्कि उस व्यक्ति को गौर से देखकर प्रति प्रश्न कि -‘‘ तुम जिस गॉव से आए हो उस गॉव के लोग कैसे है?'’
आगंतुक ने सपाट स्वर में कहा- ‘‘उस गॉव के लोग बेईमान, झुठे और मक्कार है।‘‘
‘‘ परंतु इस गॉव के लोग तो बेईमान, झूठे, मक्कार के अलावा हिंसक भी है। तुच्छ बातो पर मरने-मारने पर उतारु हो जाते है।‘‘ उस बुजुर्ग ने जवाब दिया।
वह व्यक्ति तो बुजुर्ग की बात सुनकर अपना सा मुॅह लेकर चला गया। एक घंटे बाद, उस बजुर्ग के पास, किसान जैसा नजर आने वाला व्यक्ति आया और उसने पूछा--‘‘मै पास के ही गॉव में रहता हूॅ। जमीन में पानी खत्म हो जाने से रोजगार नहीं रहा। मै इस गॉव में रहकर गुजर बसर करना चाहता हूॅ। यहॉ के लोग कैसे है, बाबा।
बुजुर्ग ने वही प्रश्न दोहराया-‘‘ तुम जिस गॉव को छोडकर आ रहे हो, वहॉ के लोग कैसे है?'’
‘‘ उस गॉव के लोग बहुत अच्छे हैं। प्रेम से रहते है। वहॉ जमीन में पानी खत्म नही होता तो मै कभी भी उस प्यारे गॉव को नहीं छोडकर नहीं आता। ‘‘
‘‘ इस गॉव के लोग प्रेम भाव से ओतप्रोत हैं। शिक्षित है। बाहर से आकर बसने वालो को अतिथि का दर्जा देते है। आतिथ्यपूर्ण मानसिकता के लोग है। भले लोग रहते हैे। तुम इस गॅाव में आकर आनंदित होअेागे ‘‘
आगंतुक खुश हुआ। उसने मन ही मन सोचा कि उसका चुनाव अच्छा रहा। इस प्रकार जिसकी, जैसी सोच, वैसे ही उसके भाव। कबीरदास भी कहते है-- मै बुरे व्यक्ति की खोज में निकला था लेकिन मुझे कोई बुरा आदमी ही नहीं मिला। जब मैने मेरे भीतर झॉककर देखा तो पता लगा कि मुझसे बुरा तो कोई नहीं हैं।
समाज, परिवार और परवरिश मिलकर भावो को शुद्व या अशुद्व करने का काम करते है। भाव, जीवन की दशा और दिशा के निर्धारक है। जो भाव, समाज की गला काट प्रतियोगिता के कदमेा तले कुचलकर अशुद्व हो चुके है। उन्हे शुद्व किया जा सकता है। ओशो ने साठ साल पहले महाबलेश्वर के प्रकृतिक वातावरण में एक घ्यान शिविर आयोजित किया था। इस शिविर में सदगुरु ओशो नें भावो को शुद्व करने के उपाय भी सुझाए हैं। जिन लोगो नें इन उपायो को इमानदारी और लगन से आजमाया, उन लोगो के अनुभव शानदार रहें। सर्वप्रथम आघ्यात्म की दृष्टि से भावो पर विचार करते है फिर ओशो के द्वारा सुझाए गए घ्यान प्रयोगो का विवेचन करेगें।
ओशो ने भावनाओ को मानव जीवन में उच्च स्थान दिया है। भाव शुद्वि की उपयोगिता, शरीर शुद्वि और विचार शुद्वि से अधिक मानी गई है। मानव अपने भावो से सर्वाधिक प्रभावित होता हैं। प्रेम, घृणा और क्रोध भावो से प्रभावित होते हैं। ओशो कहते हैं कि अधिकांश व्यक्तियो को मालूम है कि क्रोध से खराब कोई स्थिति नहीं है। ज्यादातर अपराध क्रोध की देन होते है। लोग संकल्प भी करते है कि अब वे क्रोध नहीं करेगें लेकिन जब क्रोध उन्हें पकडता है तो सारे संकल्प धरे रह जाते है। ऐसा क्यो होता है कि जब हम विचार के तल पर क्रोध नहीं करने का प्रण कर लेते है फिर भी उस संकल्प को जीवन में प्रयुक्त नहीं कर पाते हैं। संकल्प को जिंदगी के सफर में हमराह बनाना होगा। फिर सफर प्रतिकर हो सकेगा। फिर यक्ष प्रश्न खडा होता हैं कि भाव और विचार जीवन को कैसे रुपांतरित कर सकते हैे। अेाशो के अनुसार जीवन तब रुपांतरित हो सकता हैं जब भाव शुद्व हो जाए। लेकिन भाव शुद्वि के लिए भी साधना आवश्यक हैं। ऐसा नहीं हैं कि हमने विचार किया कि भाव शुद्व हो जाओ और भाव शुद्व हो गए। सामाजिक परिवेश ने भावो को अशुद्व करने में कोई कसर नहीं छोडी है।
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